For Referencing - Ankit Dwivedee, Vaishvik Shanti Me Bauddha Dharm Ki Bhumika (Parmita, Darshan Parishad (M.P. & C.G.), Oct. 2025), ISSN 0975-2560, Peer Reviewed – Group 1 – Sl No. 15, Page No. 144-147
शोध-सार :-
आज दुनियाभर में मनुष्य राजनीतिक संघर्ष, हिंसा व युद्ध से कहीं न कहीं पीड़ित दिख रहा है, जहाँ लोग अशान्ति से जूझ रहे हैं। ऐसे समय में जरूरी हो जाता है कि वैश्विक शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो। जब भी शान्ति की बात आती है, दुनियाभर की निगाहें भारत की ओर होता है, जहाँ से निकले भगवान बुद्ध ने शान्ति व मैत्री भाव का संदेश दुनियाभर को दिया। इस शोध-पत्र में हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि कैसे समकालीन संघर्षों के बीच बौद्ध दर्शन व विचार वैश्विक शान्ति स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। कैसे अहिंसा, करूणा, विचारशीलता तथा परस्पर जुड़ाव के सिद्धांत वैश्विक शान्ति स्थापित करने में सहयोग कर सकते हैं। गुणात्मक और तुलनात्मक दोनों रूप से प्रकाश डालते हुए बौद्ध शान्ति के सैद्धांतिक व व्यवाहारिक स्वरूपों का अध्ययन करते हुए कैसे यह आज के समय में वैकल्पिक समाधान प्रस्तुत कर सकता है ? इस पर प्रकाश डालेंगे और बताने का प्रयास करेंगे कि कैसे बौद्ध धर्म आज के वैश्विक शान्ति के लिए मूल्यवान है ?
बीज शब्द :-
बौद्ध धर्म, वैश्विक शान्ति, अहिंसा, युद्ध
प्रस्तावना :
वर्तमान समय में विश्व के विभिन्न हिस्सों में संघर्ष, विरोध, हिंसा एक छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर तक जारी है। रूस-यूक्रेन, इजराइल-फ़िलिस्तीन, भारत-पाकिस्तान, म्यांमार, बांग्लादेश व अन्य देशों में राजनीतिक, जातीय, धार्मिक संघर्ष व हिंसा विशेष रूप से शामिल है। वर्तमान समय में शांति स्थापित के लिए हम हमले, बम, बारूद, परमाणु हथियार को यंत्र समझ रहे हैं जिससे अशान्ति फैलने के साथ-साथ मानवीय मूल्यों का भी हनन हो रहा हैं। इन संदर्भों में बतौर बौद्ध अध्ययन शोधार्थी मेरे दृष्टिकोण में दूरगामी सकारात्मक परिणाम व स्थायी समाधान जो कि शान्ति स्थापित करने के साथ-साथ मानवीय मूल्यों की भी रक्षा करे, बुद्ध के विचारों व नीतियों में परिलक्षित होता दिख रहा है। बम, बारूद, परमाणु की जगह हम अहिंसा, करूणा, मैत्री, प्रज्ञा भाव से विश्व को एक सूत्र में बांध सकते हैं और “वसुधैव कुटुंबकम्” चरितार्थ करने का प्रयास कर सकते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति में निहित्त मूल्य “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।” इस दिशा में पूरे विश्व को भारत एक समाधान प्रस्तुत कर सकता है,वर्तमान भारत सरकार के विजन फाॅर विकसित भारत 2047 के अंतर्गत भारतीय दर्शन अपनी भूमिका ‘युद्ध नहीं बुद्ध’ की नीति से स्थापित कर सकता है। इस बात पर जोर देना आवश्यक है कि बौद्ध, जैन और वेदान्त सहित सम्पूर्ण भारतीय धार्मिक-दार्शनिक परम्परा ने विचार और कर्म दोनों में अहिंसा को अपनाने पर बल दिया है। तभी तो कहा गया है कि “अहिंसा परमो धर्म:”। आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि हिंसा शांति के लिए अनुकूल नहीं है। अहिंसा का अर्थ है हिंसा न करना और बौद्ध धर्म के मूलभूत मानदंडों में से एक है। इसे स्पष्ट और असंदिग्ध शब्दों में पंचशील/दशशील के संदर्भ में निर्धारित किया गया है। किसी को मारने के लिए प्रेरित करना, मृत्यु के पक्ष में बोलना या किसी को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना गंभीर अपराध माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बोधिसत्व किसी को भी नुकसान पहुँचाने के बारे में सोचते तक नहीं हैं। इसी प्रकार यह भी कहा जाता है कि जीवन का विनाश सबसे गंभीर दोष (पाराजिक) है। नागार्जुन के अनुसार हत्या सबसे गंभीर पाप है। भगवान बुद्ध ने अपने पहले ही उपदेश धर्म चक्र प्रवर्तन सुत्त में “बिना किसी भेदभाव के सभी प्राणियों के कल्याण और सुख की अवधारणा विकसित की।” "संसार के प्रति करुणा" जैसा कि हम जानते हैं, मानव इतिहास में यह पहली बार था कि एक सामान्य भलाई या सर्वजन हिताय की अवधारणा की परिकल्पना की गई, जिसका प्रभाव न केवल आम आदमी पर पड़ा, बल्कि विश्व के लोगों और यहाँ तक कि ब्रह्मांड के अन्य निवासियों पर भी पड़ा। इसे एक ऐसी शिक्षा के रूप में भी वर्णित किया गया है जो इस जीवन में बिना किसी विलम्ब के परिणाम देती है, जिसका अर्थ है सर्वकालिक सत्यापन और अन्वेषण।
विश्लेषण :
महान प्रणेता थिक नाथ हान्ह(वियतनाम के), वालपोल राउला (श्रीलंका के) और तेनज़िन ग्यात्सो (तिब्बत के 14वें दलाई लामा) जैसे आधुनिक प्रामाणिक बौद्धों ने भी प्रेरक स्वर में, अहिंसा और शांति को अपनाने की वकालत की है। उनके अनुसार, न्यायपूर्ण युद्ध जैसा कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि युद्ध से केवल क्रूरता, घृणा और हिंसा ही उत्पन्न होती है। हिंसा केवल हिंसा और तीव्र शत्रुता को जन्म देती है। धम्मपद के पहले वग्ग में ही कहा गया है कि “अक्कोच्छि मं अवधि मं,अजिनि में अहासि मे। ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति” (उसने मुझे दुर्वचन कहे, उसने मुझे मारा, उसने मुझे परास्त किया, उसने मुझे लूट लिया; जो ऐसे विचारों को मन में रखता है, उसका वैर कभी समाप्त नहीं होता।) "न हि वेरेन वेरानि, सम्मन्तीध कुदाचनं। अवेरेन च सम्मन्ति, एस धम्मो सनन्तनो" (वैर से वैर समाप्त नहीं होता है। वैर प्रेम से ही शान्त होता है। यह आदि धर्म है।) आज भारत ग्लोबल साफ्ट पावर के रूप में भी तेजी से विकसित हो रहा हैं। जिसके लिए वर्तमान भारत सरकार, बौद्ध दर्शन व विचार को बढाने के लिए परस्पर कदम भी उठा रही है। इसी संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) की पूरे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में सकारात्मक गतिविधियों का बढ़ना, पालि को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलना और अभिधम्म दिवस (२०२४) पर आयोजित माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का उद्बोधन “भारत ने विश्व को युद्ध नहीं, बल्कि बुद्ध दिए हैं। आज अभिधम्म पर्व पर मैं पूरी दुनिया से अपील करता हूं कि युद्ध में नहीं बल्कि भगवान बुद्ध की शिक्षाओं में समाधान खोजकर शांति का मार्ग प्रशस्त करें। सभी के लिए समृद्धि का भगवान बुद्ध का संदेश ही मानवता का मार्ग है।” इसी कड़ी में २०-२१ अप्रैल २०२३ को भारत द्वारा प्रथम वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन भी आयोजित किया गया था। जिसमें ३० देशों के १७० से अधिक प्रमुख भिक्षु, विद्वान और साधक एक साथ शामिल हुए थे, ताकि इस बात पर विचार-विमर्श किया जा सके कि समकालीन अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए बौद्ध धर्म के असीम ज्ञान का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है। इससे पूर्व अक्टूबर २०१५ में यूनाइटेड नेशन क्लाइमेट चेंज के अंतर्गत विकासशील और विकसित विश्व के पंद्रह बौद्ध नेताओं ने विश्व के नेताओं से करुणा और बुद्धिमत्ता के साथ सहयोग करने तथा पेरिस में एक महत्त्वपूर्ण और प्रभावी जलवायु समझौते पर पहुंचने का आह्वान किया था। यूनाइटेड नेशन महासभा ने 1999 के अपने संकल्प 54/115 के द्वारा वैशाख दिवस (बुद्ध पूर्णिमा) को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान की, ताकि विश्व के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक बौद्ध धर्म के योगदान को मान्यता दी जा सके, जिसने ढाई सहस्राब्दियों से मानवता की आध्यात्मिकता में दिया है और देना जारी रखा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि “करुणा, सहिष्णुता और निस्वार्थ सेवा की बुद्ध की शिक्षाएँ संयुक्त राष्ट्र के मूल्यों के साथ गहराई से प्रतिध्वनित होती हैं। गहन वैश्विक चुनौतियों के इस युग में, इन शाश्वत सिद्धांतों को हमारे साझा भविष्य का मार्गदर्शन करना चाहिए।”
थेरवाद और महायान दोनों परम्पराओं ने हमेशा शांतिपूर्ण व अहिंसात्मक समाधान पर जोर दिया है। बौद्ध धर्म के अनासक्ति, सचेतनता और करूणा रूपी सिद्धांतों का शान्ति स्थापित करने में प्रतिपादन किया जा सकता है। वर्तमान समय में हम बौद्ध प्रेरित शान्ति कार्यक्रमों की सफलता को देख सकते है जो कि उन देशों के राजनीतिक व सांस्कृतिक स्वरूपों से भी जुड़ा हुआ है। हालाँकि, इन प्रभावों के मात्रात्मक पहलू का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है। मौजूदा साहित्य का अधिकांश हिस्सा ऐतिहासिक या दार्शनिक दृष्टिकोणों पर केंद्रित है, जबकि आधुनिक भू-राजनीतिक संघर्षों में इन शिक्षाओं के व्यावहारिक अनुप्रयोग पर कम ध्यान दिया गया है। इसके अलावा, अध्ययन व्यक्तिगत या सामुदायिक स्तर की शांति पहलों पर जोर देते हैं, जिससे वैश्विक नीति निर्धारण और कूटनीति में बौद्ध धर्म की संभावित भूमिका का पता नहीं चल पाता है। प्रश्न यह भी है कि वैश्विक शांति में बौद्ध शिक्षाओं को कैसे शामिल किया जाए और इसका क्या महत्व है ?
ग्लोबल पीस इंडेक्स २०२५ (GPI) और उप्साला कॉन्फ्लिक्ट डेटा प्रोग्राम (UCDP) जैसे स्रोतों से डेटा एकत्र कर के, हमने शांति परिणामों पर बौद्ध सिद्धांतों के प्रभाव का आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) और विश्व जनसंख्या रिव्यू रिकॉर्ड का उपयोग किया है। इसमें बौद्ध आबादी वाले तीन देशों के डेटा का विश्लेषण किया गया। इनमें श्रीलंका, भूटान और जापान शामिल हैं। तीनों बौद्ध आबादी (भूटान 74.7 %, श्रीलंका 68.6 % और जापान 33.2 %) वाले देशों में प्रारंभिक विश्लेषण ने बौद्ध आबादी के अनुपात और वैश्विक शांति सूचकांक (GPI) स्कोर के बीच सकारात्मक संबंध मिला। भूटान (GPI स्कोर: 1.53) और जापान (GPI स्कोर: 1.44) जैसे महत्वपूर्ण बौद्ध उपस्थिति वाले देशों में कम बौद्ध आबादी वाले देशों की तुलना में शांति रेटिंग अधिक पाई गई, जो एक मजबूत सकारात्मक संबंध दर्शाता है।
म्यांमार और श्रीलंका जैसे संघर्ष क्षेत्रों में, सुलह प्रयासों के हिस्से के रूप में माइंडफुलनेस प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरूआत कार्यान्वयन के पहले वर्ष के भीतर हिंसक घटनाओं में कमी से जुड़ी थी। इसके अलावा, इन कार्यक्रमों में प्रतिभागियों ने सहानुभूति के उच्च स्तर और क्रोध में कमी की सूचना दी, जिसने तनाव को कम करने में योगदान दिया। गृहयुद्ध के बाद श्रीलंका में बौद्ध भिक्षुओं ने सिंहली और तमिल समुदायों के बीच संवाद को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बौद्ध धर्म की अवधारणाओं जैसे कि अनासक्ति और चार आर्य सत्यों का सहारा लेते हुए भिक्षुओं ने शांति वार्ता शुरू करने में मदद की, जिसके परिणामस्वरूप अंततः 2009 में औपचारिक शांति समझौता हुआ। इस सुलह प्रक्रिया को समुदाय-आधारित माइंडफुलनेस और करुणा प्रशिक्षण कार्यक्रमों द्वारा और मजबूत किया गया, जिसका उद्देश्य युद्ध के घावों को भरना था। म्यांमार में सरकार और जातीय समूहों के बीच संघर्ष दशकों से जारी है। हालाँकि, बौद्ध भिक्षु और शांति साधक हाल ही में शत्रुता को कम करने के लिए माइंडफुलनेस-आधारित दृष्टिकोणों का उपयोग करते हुए शांति की मध्यस्थता के प्रयासों में शामिल हुए हैं। इंटरनेशनल नेटवर्क ऑफ़ एंगेज्ड बुद्धिस्ट (INEB) जैसे संगठनों के नेतृत्व वाले कार्यक्रमों ने आशाजनक परिणाम दिखाए हैं, खासकर राखीन राज्य जैसे जातीय संघर्ष वाले क्षेत्रों में।
निष्कर्ष :
इस अध्ययन में मात्रात्मक और गुणात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि बौद्ध धर्म वैश्विक शांति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, खासकर संघर्ष-ग्रस्त क्षेत्रों में। बड़ी बौद्ध आबादी वाले देशों में शांति सूचकांक अधिक होते हैं और माइंडफुलनेस और करुणा-आधारित प्रथाओं की शुरूआत ने संघर्ष समाधान के संदर्भ में सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं। निष्कर्ष बताते हैं कि बौद्ध धर्म का अहिंसा, परस्पर निर्भरता और करुणा पर जोर समकालीन संघर्षों को संबोधित करने के लिए एक मूल्यवान रूपरेखा प्रदान करता है। जबकि बौद्ध धर्म अकेले सभी वैश्विक समस्याओं को हल नहीं कर सकता है, राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयासों के साथ इसकी शिक्षाओं को एकीकृत करना शांति निर्माण के लिए एक अधिक समग्र दृष्टिकोण प्रदान कर सकता है। हमारे मत के अनुसार बौद्ध का नैतिक विचार एवं मानवतावाद दोनों के परस्पर क्रियान्वयन के अनुसार विश्व शांति के लिए सम्पूर्ण मानव जाति को निरंतर प्रगति-पथ पर अग्रसर किया जा सकता है तथा विश्व बंधुत्व की स्थापना हो सकती है।
आपके सुझाव आमंत्रित है।
अंकित द्विवेदी,
शोध छात्र,
बौद्ध अध्ययन विभाग,
नव नालन्दा महाविहार,
संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार,
नालन्दा (बिहार), 803111
Email - apkdwivedee@gmail.com
Mobile- 9570739208

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